आज सड़क पर एक रैली जा रही थी |
सरपट-सरपट दौड़ भाग, बाल दिवस की खुशियाँ फैली जा रही थी |
अभिभावक अपने नौ निहालों को देख मंद-मंद मुस्कुराते थे |
खुश हो उनके भविष्य की सुखद कामना लिए , अनूठे सपने सजाते थे |
पर इन सब से दूर , दो छोटे-छोटे हाथ , गर्म भट्टी मैं लोहा पिघला रहे थे |
भूली - बिसरी गलियों मैं अपनी , कोमल देह तपा रहे थे |
जुलूंस जब पास से निकला तो हाथ थम गये | और वो खिड़की से झाँकने लगे |
उन नन्ही नीरस आखों को देख , एक बच्चा दूसरे से कहता है |
देख लगता है उस कोठरी मैं भी बचपन रहता है |
Composed by - Vinay Gupta
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बाल दिवस पर विशेष
Friday, November 14, 2008
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