बाल दिवस पर विशेष

आज सड़क पर  एक  रैली जा रही  थी |
सरपट-सरपट  दौड़ भाग, बाल दिवस की खुशियाँ फैली  जा  रही  थी  |
अभिभावक अपने नौ निहालों को देख मंद-मंद  मुस्कुराते थे |
खुश हो  उनके  भविष्य की  सुखद कामना लिए , अनूठे सपने सजाते   थे |

पर इन सब  से  दूर , दो  छोटे-छोटे  हाथ , गर्म भट्टी मैं  लोहा  पिघला रहे थे  |
भूली - बिसरी गलियों मैं  अपनी  , कोमल  देह तपा  रहे थे  |
जुलूंस  जब  पास  से निकला  तो  हाथ थम गये | और वो  खिड़की से झाँकने लगे |
उन  नन्ही नीरस आखों  को देख  , एक  बच्चा दूसरे से कहता है |
देख लगता है  उस कोठरी मैं भी बचपन रहता है  |

Composed by -  Vinay Gupta

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